पिडावा। सकल दिगंबर जैन समाज के 10 दिवसीय पयुर्षण महापर्व का नौ वां दिन उत्तम आकिंचन धर्म के रूप में बड़े ही हर्ष और उल्लास के साथ मनाया गया। प्रातः काल श्री जी का संगीतमय अभिषेक एवं शांति धारा हुई। उसके बाद मुनि श्री मुनि सागर व भूतबलि सागर महाराज के द्वारा श्रावक श्राविकाओं को आचार्य पूज्य पाद द्वारा इष्टोपदेश ग्रंथ के बारे में समझाया गया कि इष्ट का अर्थ सुख तथा प्रिय होता है अर्थात जो आत्मा का प्रिय इष्ट का हितकारी होता हो उसको इष्ट कहते हैं इष्ट का कथन का प्रतिपादन को इष्टोपदेश कहते हैं। संसार में स्थित भव्यात्मा को मोक्ष सुख या आत्मीय सुख ही इष्ट है।
सुख एक कार्य है वह कार्य बिना कारण नहीं होता मोक्ष सुख का कारण है सम्यक दर्शन, सम्यक ज्ञान और सम्यक चरित्र इन तीनों की प्राप्ति और परिपूर्णता आत्मध्यान के बिना नहीं हो सकती। आत्म ध्यान का अर्थ है आत्मा में एकाग्रता व लीनता मुनि भूत बलि सागर महाराज ने बताया कि परिग्रह को त्यागने वाला श्रावक ही वास्तविक रूप में आकिंचन्य धर्म अंगीकार कर सकता है।जिसने परिग्रह का त्याग नहीं किया। वह आकिंचन्य धर्म का पालन करने का अधिकारी नहीं हो सकता। इसलिए पर पदार्थों परिग्रहों के प्रति ममत्व भाव हटाना आकिंचन्य धर्म है। प्रवक्ता मुकेश जैन चेलावत ने बताया कि शुक्रवार को पयुर्षण पर्व के समापन पर भगवान की शोभा यात्रा दोपहर 3 बजे श्री सांवलिया पारसनाथ दिगंबर जैन बड़ा मंदिर से निकाली जाएगी व रविवार को पड़वा के जुलूस के बाद मुनि श्री कि गुरु भक्ति व मंगलमय आरती के बाद क्षमा वाणी पर्व मनाया जायेगा।
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