पिड़ावा। सकल दिगंबर जैन समाज के तत्वाधान में 108 श्री भूतबलि सागर महाराज, मुनि सागर, मोन सागर,मुक्ति सागर महाराज का 43वां चार्तुमास बड़े आनंद, भक्ति ,व उत्साह के साथ चल रहा है। समाज प्रवक्ता मुकेश जैन चेलावत ने बताया की महाराज श्री का चातुर्मास बड़े ही उत्साह के साथ धर्म मय, तप, त्याग, संयम के साथ प्रतिदिन श्रावक, श्राविकाये पूण्य लाभ ले रहे हैं। प्रतिदिन प्रातः 7 बजे युवा वर्ग की बड़े मंदिर में छहढाला ग्रंथ की कक्षा व प्रातः 8:30 बजे पारसनाथ जुना मन्दिर नवीन जिनालय खंडपुरा में प्रवचन, आहार चर्या, दोपहर में बड़ा मंदिर में स्वाध्याय, गुरु भक्ति, वैया वृत्ति आदि का पुण्य लाभ मिल रहा है। महाराज के चतुर्मास को चलते 1 माह हो गया है। चातुर्मास के मात्र 68 दिन शेष हैं। इस अवसर पर रविवार को नवीन जिनालय में महाराज जी ने अपने प्रवचन में बताया की संसार वृत्ति के त्याग बिना सच्चा सुख नहीं मिलता है मन से दान का पुण्य कार्य होता है। यही शांति का मार्ग भी होता है। सुखी रहना है तो धर्म के मार्ग पर चलना होगा जो बात हमें अपने लिए खराब लगती है। वह दूसरों के लिए उपयोग में नहीं लेना चाहिए उन्होंने बताया कि मनुष्य जीवन धर्म करने के लिए श्रेष्ठ समय है इस समय धर्म ना करने वालों को अंतर ज्ञानी मूर्ख ही कहते हैं। हमें समय की कीमत समझना चाहिए संसार में किस पल जीवन में दुखों का पहाड़ टूट जाएगा यह कहा नहीं जा सकता। इसलिए मोह को छोड़कर त्याग, तपस्या करते हुए जीवन को मोक्ष मार्ग की ओर अग्रसर करना चाहिए संसार के महल, राज्य में भी शांति नहीं मिलती है। इसलिए कई राजा तपस्वी बन गये और अपनी आत्मा का कल्याण कर गये, उन्होंने बताया कि माता-पिता व गुरू की छत्रछाया मिलना बहुत मुश्किल होता है। यह पूण्य कर्म से ही मिलते हैं। माता पिता सदैव संतान के भले की सोचते है अतःहमे कषायों की मन्दता रखते हुए पापों का एक देश त्याग करके जब तक गृहस्थावस्था है। तब तक अणुव्रतों को तो अवश्य धारण करना चाहिए और भविष्य में महाव्रतों को धारण कर शुद्ध उपयोग की भावना रखनी चाहिए ।
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