पिड़ावा। नगर के श्री सांवलिया पारसनाथ दिगंबर जैन अतिशय क्षेत्र बड़ा मंदिर पिड़ावा में 108 श्री भूतबली सागर, मुनि सागर, मुक्ति सागर, मोन सागर ससंघ विराजित है। जिनकी धर्म देशना का पूण्य लाभ श्रावक, श्राविकाओं को प्रतिदिन मिल रहा है। समाज प्रवक्ता मुकेश जैन चेलावत ने बताया की नगर में ग्रीष्मकालीन धर्म देशना से नगर में ज्ञान की गंगा बह रही है। इस अवसर पर नित्य गुरू भक्ति, प्रवचन, आहार चर्या, स्वाध्याय, वेयावृति का लाभ भक्तों को मिल रहा है। प्रातः काल के प्रवचन में मुनि सागर महाराज ने बताया कि जीवन में विनम्रता का होना बहुत ही जरूरी है। विनम्रता के जरिए ही ज्ञान की प्राप्ति की जा सकती है। प्रत्येक मानव के जीवन में विनम्रता का संचार होना चाहिए। इसके लिए जरूरी है कि सभी जन अपने माता पिता के प्रति उदार बने अपने अपने गुरुजनों के प्रति सदाचार और सम्मान का भाव रखें। महाराज ने श्रावक, श्राविकाओं से कहा कि अहंकार का त्याग कर दें अहंकार का नाश करके ही जीवन में विनम्रता का भाव पैदा किया जा सकता है। अध्यात्म और भौतिकता का भेद बताते हुए कहा कि संसार में नाना प्रकार के भौतिक साधन है, लेकिन ज्ञान का स्थान नहीं है, लेकिन जैसे ही आपके अंदर अध्यात्म का प्रवेश होगा। ज्ञान का मार्ग भी प्रशस्त होने लगेगा। उन्होंने भरत बाहुबली का दृष्टांत देते हुए बताया की बाहुबली प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव के पुत्र थे। अपने बड़े भाई भरत चक्रवर्ती से युद्ध के बाद उनको वैराग्य हो गया और वे मुनि बन गये उन्होंने 1 वर्ष तक कायोत्सर्ग मुद्रा में ध्यान किया। जिससे उनके शरीर पर बेले चढ़ गई व एक वर्ष के कठोर तप के पश्चात उन्हें केवलज्ञान की प्राप्ति हुई और वह केवली कहलाये। इसलिए आप लोग भी उनसे शिक्षा लेकर अपने जीवन का कल्याण करो।
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