HADOTI HULCHAL NEWS

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संसार दुख का मूल कारण: मिथ्यात्व- भूतबलि सागर महाराज

  


पिड़ावा 108 संत श्री भूतबलि सागर महाराज ससंघ श्री सांवलिया पारसनाथ दिगम्बर जैन अतिक्षय क्षेत्र बड़ा मन्दिर में विराजमान है। जिनके पावन सानिध्य में 13 मई को पंचकल्याणक प्रतिष्ठा मोहत्सव एंव विश्व शान्ति महा यज्ञ सआनंद पूर्वक सम्पन्न हुआ। जैन समाज प्रवक्ता मुकेश जैन चेलावत ने बताया की महाराज श्री की प्रतिदिन प्रातः 7 बजे से 8 बजे तक स्वाध्याय एंव तत्वचर्चा, 9 बजे आहार चर्या, दोपहर12 बजे 1 बजे तक सामायिक व 4 बजे तत्वचर्चा शाम को 7 बजे गुरूभक्ति, रात्रि में 8 बजे वेयावृति हो रही है। प्रातः उपदेश के माध्यम से उन्होंने बताया कि तत्वों पर यथार्थ श्रद्धान नहीं होना ही मिथात्यव है ,अथवा सच्चे देव, शास्त्र, गुरु पर श्रद्वान न करना या झुठे देव, शास्त्र गुरू का श्रद्वान करना मिथात्यव है। वितरित या गलत धारणा का नाम मिथात्यव है। मिथात्यव के उदय से जीव को सच्चा धर्म नहीं रूचता है। जैसे पित्त के रोगी को दूध भी कड़वा लगता है।

मिथात्यव के दो भेद होते हैं ग्रहित एवं अग्रहित

1.ग्रहित मिथ्यात्व:- पर के उपदेश आदि से कूदेवादिक में जो श्रद्धा उत्पन्न हो जाती है उसे ग्रहित मिथात्यव कहते हैं।

2.अग्रहित मिथात्यवः- अनादि काल से किसी के उपदेश  के बिना शरीर को ही आत्मा मानना व पुत्र धन आदि में अपनत्व करना अगृहित मिथ्यात्व  है।

मिथात्यव कें पांच भेद होते है।  1. विपरीत 2. एकांत 3. विनय 4. संशय 5. अज्ञान  

उन्होंने बताया की सच्चे देव, शास्त्र, गुरु को छोड़कर अन्य कुदेव में देव बुद्धि, कुशास्त्र  में शास्त्र बुद्धि ,कुगुरु में गुरु बुद्धि एवं अधर्म मे धर्म बुद्धि का होना मूढ़ता मानी जाती है। इन मुढ़ताओ से युक्त व्यक्ति मिथ्या दृष्टि माना जाता है इन कुदेव आदि का सहारा पत्थर की नाव के समान संसार समुद्र में डुबाने  वाला घोर दुःखो का कारण है। अतःमुढ़ताओ का संक्षिप्त स्वरूप भी कहा जाता है। देव मूढता, लोक मूढ़ता, धर्म मूढ़ता, शास्त्र मूढता, गुरू मुढ़ता इन सब को छोड़ना चाहिए और सम्यकदर्शन, सम्यक ज्ञान, सम्यकचारित्र को प्राप्त करना चाहिए।

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