पि ड़ावा नगर राजस्थान का अंतिम छोर व मध्य प्रदेश की सीमा से लगा हुआ एक नगर है यहां की संस्कृति हाड़ोती एवं मालवा की मिश्रित है । 5 जनवरी को 90 नगर निकाय चुनाव की घोषणा होने के साथ ही नगर में राजनैतिक सरगर्मिया तेज हो गयी । इस बार कांग्रेस और भाजपा के साथ आम आदमी पार्टी भी चुनाव में उतरेगी । तीनो ही पार्टियो में बैठको का दौर शुरू हो गया । अब पिड़ावा नगर पालिका के राजनीति इतिहास की बात करे तो इस नगर के वासियो ने आजादी के बाद से ही राजनैतिक क्षेत्र में कई उठापटक देखी । इस नगर के वासियो ने आजादी के बाद से ही राजनैतिक क्षेत्र में कई उठापटक देखी । नगरवासियो ने कभी तो नगर पालिका के लिए मतदान किया तो कभी ग्राम पंचायत के लिए मतदान किया । नगर के बड़े बुजुर्गो से मिली जानकारी के अनुसार पिड़ावा में आजादी के बाद नगर पालिका बनी । पालिका के पहले अध्यक्ष मांगीलाल झवर रहे । जिसके बाद 1962 में पिड़ावा में नगर पालिका को हटाकर ग्राम पंचायत बनाया गया । कई वर्षो तक पिड़ावा की जनता ने ग्राम पंचायत में सरपंच के लिए मतदान किया । ग्राम पंचायत के कार्यकाल में सबसे पहले सरपंच बिरदीचंद जैन बने । जैन को जनता ने जब तक पिड़ावा ग्राम पंचायत रही तब तक पिड़ावा ग्राम पंचायत का सरपंच बनाया । जिसके पश्चात् 8 फ रवरी 1974 को फि र से पिड़ावा में ग्राम पंचायत को हटाकर नगर पालिका की स्थापना की गयी । जिसमे भी बिरदीचंद जैन को नगर पालिका का अध्यक्ष चुना गया । इतना ही नही अभी तो नगर वासियो को राजनितिक दावपेंच और देखना था पालिका की स्थापना होने के कई वर्षो बाद फि र ऐसा मौका आया की नगर पालिका को फ ीर से हटाने के प्रयास किये गए, लेकिन नगर पालिका को फि र से ग्राम पंचायत बनाने के विरोध में न्यायालय की शरण लेकर स्टे के लिए अर्जी लगाई गयी । इस मामले में न्यायालय द्वारा हस्तक्षेप कर स्टे दिया गया । जिसके बाद 1992 में पिड़ावा में नगर पालिका ही रही और वर्तमान समय तक नगर पालिका ही संचालित की जा रही है ।
गोटियों से हुआ फैसला
नगर की स्थानीय राजनीति में आजादी के बाद से ही कई बार उतार चढ़ाव देखने को मिले । नगर पालिका चुनावों में कभी पार्टी की नीतिया तो कभी व्यक्ति का व्यवहारिक चेहरे को देखकर लोगों ने मतदान किया तो कभी दोनों प्रतिद्वंद्वियों के बराबर मत आने पर गोटिया डालकर फैसले हुए । आजादी के बाद से ही नगर पालिका अध्यक्ष, उपाध्यक्ष व पार्षदों के परिणाम आने के बाद ऐसे मौके भी आये जिनकी जीत का फैसला गोटिया डलवा कर किया गया । सन 1982 के चुनाव परिणाम आने के बाद दोनों प्रत्याशियों के बराबर मत होने के चलते 18 फ रवरी 1982 में नगर पालिका अध्यक्ष पद के लिए चुनाव में जीत का फैसला गोटिया डालकार किया गया । जिसमे भवरलाल मेघवाल को जीत मिली । भवरलाल मेघवाल का अध्यक्ष पद कार्यकाल 18 फ रवरी 1982 से 1 मार्च 1987 तक रहा । इसी चुनाव में पालिका उपाध्यक्ष पद का फैसला भी गोटियों से हुआ । जिसमें गोपाल सोनी को जीत मिली । इसके बाद 1987 में वार्ड पार्षद के लिए भेरू सोनी व नेमीचंद जैन के बराबर मत आने के चलते गोटिया डाली गयी । जिसमे भेरू सोनी को जीत मिली ।
हॉट सीटो पर हुआ कड़ा संघर्ष
स्थानीय राजनीती में शुरुवाती चुनाव से एसी कई हॉट सीट है जिन पर कड़ा संघर्ष देखने को मिला । आजादी के बाद से ही नगर पालिका के चुनावो में कांग्रेस, जनसंघ, जनता पार्टी के उमीदवारो व निर्दलीय उमीदवारो का बोल बाल रहा । इतिहास की बात करे तो कांग्रेस के साथ जनसंघ व जनता पार्टी के उमीदवार चुनाव में उतरते थे । जिसके बाद लगभग 1982 में भाजपा पार्टी ने भी नगर पालिका चुनावो में अपने उमीदवार उतारना शुरू किया । पहले के चुनाव पार्टी की छवि को कम व स्थानीय उमीदवारो की छवि, प्रतिष्ठा व आमजन के प्रति व्यवहार को अधिक महत्व दिया जाता था और वर्तमान की बात करे तो अब पार्टियो की नीतिया, उपलब्धिया, प्रमुखता के दम पर चुनाव लड़ा जाता है । 1980-85 चुनाव में नफीस अहमद व वहीद मंसूरी के बिच कड़ा मुकाबला हुआ । इस चुनाव में इस सिट को हॉट सीट माना गया । इसी तरह 1992 में वार्ड 5 से भाजपा के सज्जन सिंह राणा की पत्नी शकुंतला जैन व जनता दल से धनसिंह पटवारी की पत्नी चंदकला के बीच कड़ा मुकाबला देखने को मिला । जिसमे भाजपा की शकुंतला जैन को जीत मिली । इसी तरह ऱाघु सिंह व शकील अहमद वाला वार्ड भी हॉट सिट रहा । जिसमे शकील अहमद जीते । वही सुलतान सिंह के सामने खड़े हुए सगीर अहमद वाला वार्ड भी हॉट सीट रहा । 2005 के चुनाव में वार्ड 5 में भी बहुत ही अहम् मुकाबला देखने को मिला क्योकि इस चुनाव में वार्ड के भाजपा प्रत्याशी राजेंद्र जैन व कांग्रेसी प्रत्याशी महावीर जैन नगर पालिका अध्यक्ष पद के चेहरे देखे जा रहे थे । इस वार्ड में भाजपा के राजेंद्र जैन ने महावीर जैन को मात दी और नगर पालिका अध्यक्ष बने ।
2005 में बना भाजपा का पहली बार बोर्ड
नगर की नगर पालिका कि राजनीति में आजादी के बाद से ही कांग्रेस के किले को सर्वप्रथम भाजपा के नेता राजेंद्र जैन ने सन 2005 के चुनाव परिमाण आने पर भाजपा का बोर्ड बनाकर कांग्रेस का किला ढहाया । सन 2005 में भाजपा की और से नगर पालिका अध्यक्ष पद का चेहरा बनकर जैन ने संघर्षरत व कड़ी मेहनत से प्रचार प्रसार कर नगर पालिका में पहली बार भारतीय जनता पार्टी का बोर्ड बनाने में सफ ल रहे । इस चुनाव में भाजपा को 15 वार्डो में पूर्ण बहुमत के साथ 9 वार्डो में जित मिली । वही 5 वार्डो के साथ ही कांग्रेस को संतुष्ट होना पड़ा व एक वार्ड निर्दलीय के खाते में गया । जिसके बाद निर्दलीय ने भी भाजपा को समर्थन दे दिया । सन 2005 के चुनाव में भाजपा के पास 10 वार्ड व कांग्रेस के पास 5 वार्ड रहे । इस चुनाव में भाजपा के राजेंद्र जैन के पक्ष में 10 पार्षदों के मत मिलने पर नगर पालिका का अध्यक्ष चुना गया । वही उपाध्यक्ष पद पर भाजपा की इंद्रा शर्मा के पक्ष में 10 पार्षदों ने मत दिया ।
एक दौर ऐसा भी
2015 के चुनाव में जब आम जान को ऐसा महसूस हो रहा था की आपकी बार कांग्रेस का बोर्ड बनने के आसार दिखने लगा उसी समय नामांकन दाखिल करने के आखरी समय तक टिकिटो की खीचतान को लेकर घमासान जारी रहा और स्थानीय कांग्रेस पार्टी के दो फाड़ हो गए । उच्य स्तरीय नेताओ द्वारा दोनों गुटो को संतुष्ट करने के काफी प्रयास किये गए , लेकिन दोनों ही गुट अपने जिद पर अड़े रहे । जिसका सीधा सीधा फायदा भाजपा को मिला । फि र ऐसा दौर भी आया की कांग्रेस के कद्दावर नेता स्वर्गीय महावीर कुमार जैन ने कांग्रेस पार्टी को छोड़ कर भाजपा पार्टी की सदस्यता लेकर भाजपा के दो पार्षदों को निर्विरोध विजय दिलाई । उनमे ही वार्ड 5 के निर्विरोध पार्षद निर्मल शर्मा आगे चलकर नगर अध्यक्ष के पद पर आसीन हुए ।
पिछले 3 चुनावो में भाजपा 2 व कांग्रेस 1 चुनाव जीती
2005 से 2015 के चुनावो की हलचल
स्थानीय नगर पालिका चुनाव में सन 2005, 2010 व 2015 के परिणामो पर चर्चा करे तो भाजपा ने 2 चुनाव व कांग्रेस ने 1 चुनाव जीत कर पालिका में बोर्ड बनाया । 2005-06 के चुनाव में 15 वार्डो के लिए लॉटरी निकाली गयी । जिसमे 4 महिलाओ सहित 11 सामान्य वार्ड, 1 महिला सहित 3 ओबीसी वार्ड व एक वार्ड एससी का रहा । 2005-06 के चुनाव में 88.81 प्रतिशत मतदान हुआ जबकि 2000 के चुनाव में 79.80 प्रतिशत मतदान हुआ । 2000 चुवान की अपेक्षा 2005 के चुवान में 9.01 प्रतिशत ज्यादा मतदान हुआ । 2005 में 5190 लोगो ने मतदान किया । पार्टियो के वोट की बात करे तो भाजपा को 2329 वोट मिले, कांग्रेस को 2290 वोट, बीएसपी को 104 वोट व निर्दलीय को 392 वोट मिले । 2000 के चुनाव में भाजपा को 13 वार्डो में से मात्र 1 वार्ड पर जीत मिली, जबकि कांग्रेस के खाते में 6 वार्ड व अन्य के खाते में 6 वार्ड गए । इस का उलटा परिमाण 2005 के चुनाव में देखने को मिला । जहा भाजपा को 9 वार्डो में जीत मिली । भाजपा के राजेन्द्र जैन को पालिका का अध्यक्ष व इंदिरा शर्मा को उपाध्यक्ष बनाया गया । जिसके बाद 2010 में नगर पालिका में अध्यक्ष पद के लिए सीधा चुनाव हुआ । इस चुनाव में कांग्रेस की संजीदा खानम ने भाजपा की इंद्रा शर्मा को कड़ी टक्कर देते हुए सीधे मुकाबले में हराकर पालिका अध्यक्ष बनी । वही वार्ड पार्षदों के चुनाव में भी कांग्रेस में बाजी मारी । कांग्रेस ने 8 वार्डो में अपनी जीत दर्ज की तो भाजपा 4 वार्डो पर ही सिमट कर रह गयी । वही 3 वार्डो में निर्दलीय उमीदवारो ने जीत कर नगर पालिका बोर्ड में अपनी जगह बनाई । 2015 के चुनाव परिणाम में फि र से फेरबदल हुआ और भाजपा का बोर्ड पालिका में बना । इस चुनाव में भाजपा को 3423 वोट, कांग्रेस को 2731 वोट व निर्दलीय को 33 वोट मिले । 15 वार्डो में से भाजपा 8 वार्ड जितने में कामयाब रही तो कांग्रेस ने भी कड़ा मुकाबला करते हुए 7 वार्ड जीते । भाजपा के पास 1 वार्ड ज्यादा होने के चलते भाजपा के निर्मल शर्मा अध्यक्ष व भाजपा के प्रमोद जैन उपाध्यक्ष चुने गए ।
इस बार के परिसीमन में वार्डों की संख्या सम क्यों ?
7 से 20 हुए वार्ड
स्थानीय नगरपालिका में हजारो मतदाता मतदान करेंगे । 1974 में नगर पालिका की स्थापना के समय सबसे पहले नगर विभाजित कर 7 वार्ड बनाये गया थे । जिसके बाद अगले परिसीमन में 7 वार्डो के 11 वार्डो किये गए फि र अगले परिसीमन में 11 वार्डो के 13 वार्ड किए गए । जिसके बाद 2005 के परिसीमन में 13 वार्डों की संख्या बढक़र 15 हो गई । अब 2020 में हुए परिसीमन में वार्डों की संख्या 15 से बढक़र 20 हो गई । हर बार परिसीमन में वार्डों की संख्या विषम रहती थी, लेकिन इस बार के परिसीमन में वार्डो की संख्या सम हो गई । वर्तमान में होने वाले चुनाव में अगर 20 वार्डों में दो पार्टियों के बराबर बराबर वार्ड जीतने की स्थिति में क्या गोटियों से हार जीत का फैसला होगा ।
मास्टर प्लान में पिड़ावा में 8 गांवों को शामिल किया
पिड़ावा नगर मालव के पठार पर बसा हुआ है । यहां की अधिकांश जनसंख्या कृषि, व्यापार व वाणिज्य पर निर्भर है । राज्य सरकार द्वारा नगर सुधर अधिनियम 1959 की धरा 3 के अंतर्गत मास्टर प्लान 20 जुलाई 2010 को लागू हुआ । जिसमे पिड़ावा सहित 8 ग्रामो को पिड़ावा में सम्मिलित किया गया । मास्टर प्लान 2031 में पिड़ावा सहित मिरपुरा, राजपुरा, अमिरपुरा, दिलावरा, बालदा, नारायणा, इलाईपुरा, भिस्मिल्ल्लापूरा को शामिल किया गया ।
पिड़ावा नगर की जनसँख्या जनगणना अनुसार
सन जनसँख्या
1971 7277
1981 8263
1991 9594
2001 11182
2011 12807
रोजगार के अभाव में जनगणना बड़ नही पा रही है ।
1995 से 2020 तक कुल मतदाता
सन पुरुष महिला कुल
1995 3526 3413 6939
2000 3763 3672 7435
2005 3484 3369 6853
2010 3926 3910 7836
2015 4138 4240 8378
2020 4618 4783 9401
किस पार्टी को कितने व कितने प्रतिशत मत मिले
सन |
पार्टी मत की संख्य |
|
||||
|
भाजपा |
कांग्रेस |
निर्दलीय |
भाजपा |
कांग्रेस |
निर्दलीय |
2005 |
2329 |
2290 |
392 |
45.53 |
44.77 |
7.66 |
2010 |
3043 |
3717 |
---- |
44.66 |
55.34 |
---- |
2015 |
3423 |
2731 |
33 |
55.33 |
44.14 |
0.53 |
ये रहे नगर पालिका अध्यक्ष
मांगीलाल झवर, लक्ष्मीनारायण माली, चतुरबिहारी लाल, हाजी जान महोम्मद, बिरदीचंद जैन, भवरलाल मेघवाल, शकील अहमद, सगीर अहमद, मंगला जैन, राजेन्द्र जैन, संजिदा खानम, निर्मल शर्मा
ये रहे नगर पालिका प्रशासक
गुलाबचंद विजय, मदनलाल जोशी, बंशीधर यादव, भवानी सिंह राठौर, एमआर मीणा, रामनारायण पारेता, मिश्रीलाल कोठारी, मगन सिंह चौधरी ,भूपेंद्र कुमार, भगवती प्रसाद सक्सेना, संतोष सिंह नारायणलाल शर्मा रामकृपाल त्रिपाठी कन्हैयालाल प्रभुलाल गुप्ता रघुवीर सिंह हाड़ा लक्ष्मी नारायण प्रजापति मनोहरलाल जाट
0 टिप्पणियाँ